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विष उपविषोंकी विशेष चिकित्सा - अफीम” ।
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नोट -- गर्भवती स्त्रीको अफीम जब देनी हो बहुत ही अल्प मात्रामें देनी चाहिये; क्योंकि बहुत लोग गर्भवतीको अफमीकी दवा देना बुरा समझते हैं; पर हमने ज्वार या आधी ज्वार-भर देनेसे हानि नहीं, लाभ ही देखा ।
(१८) बहुत से आदमी जब श्वास और खाँसीसे तन आ जाते हैं - खासकर बुढ़ापे में-- अफीम खाने लगते हैं । इस तरह उनकी पीड़ा कम हो जाती है । जब तक अफीमका नशा रहता है, श्वास और खाँसी दबे रहते हैं; नशा उतरते ही फिर कष्ट देने लगते हैं । अतः रोगी सवेरे शाम या दिन-रात में तीन-तीन बार अफीम खाते हैं। इस तरह उनकी जिन्दगी सुखसे कट जाती है ।
नोट -- ऊपर की बात ठीक और परीक्षित है । हमारी बूढ़ी दादीको श्वास और खाँसी बहुत तङ्ग करते थे । उसने अफीम शुरू कर दी, तबसे उसकी पीड़ा शान्त हो गई, हाँ, जब अफीम उतर जाती थी, तब वह फिर कष्ट पाती थी, लेकिन समयपर फिर अफीम खा लेती थी ।
न वातेन विना नरकेन विना
अगर खाँसी रोगमें अफीम देनी हो, तो पहले छातीपर जमा हुआ बलग़म किसी दवा से निकाल देना चाहिये । जब छातीपर कफ न रहे, तब अफीम सेवन करनी चाहिये । इस तरह अच्छा लाभ होता है; क्योंकि छातीपर कफ न जमा होगा, तो खाँसी होगी ही क्यों ? महर्षि हारीतने कहा है :
श्वासः कासो न श्लेष्मणाविना । पित्तं न पित्त-रहितः क्षयः ॥
बिना वायु-कोपके श्वास रोग नहीं होता, छातीपर बलग़म - कफ -- जमे विना खाँसी नहीं होती, रक्के बिना पित्त नहीं बढ़ता और बिना पित्त-कोपके क्षय रोग नहीं होता ।
खाँसी में, अगर बिना कफ निकाले अफीम या कोई दवा खिलाई जाती है, तो कफ सूखकर छातीपर जम जाता है; पीछे रोगीको खाँसने में बड़ी पीड़ा होती है । छातीपर कफका “घर-घर" शब्द होता है। सूखा हुआ कफ बड़ी कठिनाई से निकलता है और उसके निकलते समय बड़ा दर्द होता है; श्रत: खाँसीमें पहला इलाज कफ निकाल देना है। जिसमें भी, कफकी खाँसीमें अफीम देने से कफ छातीपर जमकर बड़ी हानि करता है । कफकी खाँसी हो या छातीपर चलग़म जम रहा हो, तो पानीमें नमक मिलाकर रोगोको पिला दो और मुखमें
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