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विष-उपविषोंकी विरोष चिकित्सा--"धतूरा"। ७१ बीजोंको वैद्य दवाके काममें लाते हैं। दवाके काममें 'धतूरेके पत्ते, फल और बीज आते हैं। इसकी मात्रा १ रत्तीकी है। जिस धतूरेके वृक्ष में कलाई लिये फूल होता है, उसे काला धतूरा कहते हैं और जिसके फूनमें से दो-तीन फूल निकलते हैं, उसे “राज धतूरा" या बड़ा धतूरा कहते हैं । * इसके सभी अङ्गों - फूल, पत्ते, जड़ और बीज वगैर:--में कुछ-नकुछ विष होता ही है। विशेष करके जड़ और बीजोंमें ज़ियादा जहर होता है । धतूरा मादक या नशा लानेवाला होता है। इसके सेवनसे कोंढ़, दुष्टत्रण, कामला, बवासीर, विष, कफ-ज्वर, जूं आ, लीख, पामाखुजली चमड़ेके रोग, कृमि और ज्वर नाश हो जाते हैं । यह शरीरके रङ्गको उत्तम या लाल करनेवाला, वातकारक, गरम, भारी, कसैला, मधुर और कड़वा तथा मूर्छाकारक है । .. धतूरके बीज अत्यन्त मदकारक-- नशीले होते हैं। चार-पाँच बीजोंसे ही मूर्छा हो जाती है। जियादा खाने या बेकायदे खानेसे ये खुश्की लाते हैं, सिर घूमता है, चक्कर आते हैं, कय होती हैं, गलेमें जलन होती और प्यास बढ़ जाती है। बहुत ज़ियादा बीज खानेसे उपरोक्त विकारोंके सिवा नेत्रों की पुतलियाँ चौड़ी होकर बेहोशी होती
और आदमी मर जाता है। ठग लोग रेल के मूर्ख मुसाफिरोंको इन्हें खिलाकर बेहोश कर देते और उनका माल-मता ले चम्पत होते हैं। . __नोट--इसकी शान्तिके उपाय हम आगे लिखेंगे। धतूरा खाया है, यह मालूम होते ही सिरपर शीतल जल गिरवालो कय करात्री और बिनौलोंकी गरी दूधके साथ खिलानो । अगर बेहोशी हो, तो नस्य देकर होशमें लायो । कपासका जड़, पत्त, बीज (बिनौले ) आदि इसकी सर्वोत्तम दवा हैं। . . ___ हिकमत के ग्रन्थों में लिखा है:--धतूरेका झाड़ बैंगनके भाइ-जैसा होता है । यह अत्यन्त मादक, चिन्ताजनक और उन्माद-कर्ता है । शहद, कालीमिर्च और सोंफ़--इसके दर्प-नाशक हैं । इसके खानेसे अवयवों और मस्तिष्कमें अत्यन्त शिथिलता होती है । यह अत्यन्त निद्राप्रद,
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