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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अस्माकमिति प्रतिज्ञास्ते धर्मेण राज्ञा सह-" स्वयमामः समेत्य त्वत्समक्षं यदाऽस्मानाकारयते किल तदा तत्र यामो नान्यथा इति ।" प्रतिज्ञालोपश्च नोचितः सत्यवादिनां प्रतिष्ठावताम् । ततो मन्त्रिण उपकन्यकुर्जेशमाजग्मुः । सूरीणामुक्तमुक्तं लेखश्चादर्शि । तत्र लिखितं यथाविशेष विणावि गया नरिंदभवणेसु हुंति गारविया । विझोन होइ बंझो गएहिं बहुएहिं विगएहिं ॥१॥ माणसरहिएहिं सुहाई जहन लम्भति रायहंसेहिं । तह तस्स वि तेहिं विणा तीरुच्छंगा न सोहंति ॥२॥ परिससियहंसउलंपि माणसं माणसं न संदेहो । अन्नत्थ वि जत्थ गया हंसा वि बया न भन्नति ॥शा हंसा जहि गय तहिं जिगय महिमंडणी हवंति । छेहउ ताहं महासरहं जे हंसिहि मुच्चंति ॥ ४॥ मलओ स चंदणुच्चिय नइमुहहोरंतचंदणदुमोहो । प-भट्ठपि हु मलया उ चंदणं जायइ महग्धं ॥५॥ अग्घायंति महुयश विमुक्तकमलायरावि मयरंदं । कमलायरो वि दिडो सुओ वि किं महुयरविहुणो ॥३॥ इमेण कुत्थुहेणं विणावि रयणायरु चिय समुद्दो । कुत्थुरयणं पि उरे जस्स ठियं सोवि हु महग्धो ॥७॥ पई मुकाणवि तरुवर फिदृइ पत्तत्तणं न पत्ताणं । तुह पणच्छाया जइ होइ कहविता तेहिं पत्तेहिं ॥८॥ में कैवि पहू महिमंडलंमि ते उच्छुदंडसारिच्छा । सरसा जडाण मझे विरसा पत्तेसु दीसंति ॥९॥ संपेई पहुणो पहुणों पहुतणं किं चिरंतण पहणं । दोसंगुणा गुणदोसा पहिं कया नहु कया तेहिं ॥१०॥ For Private And Personal
SR No.020150
Book TitleChaturvinshati Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharsuri
PublisherHemchandracharya Sabha
Publication Year1921
Total Pages283
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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