SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ S Maham An Kende Acharya Sh Kailasager Gamandi सान्वय भाषान्तर ॥३१॥ चंद्रयशदा (थता) शब्दोने हुँ सांभळवा लाग्यो. ॥१६॥ चरित्रं अन्तरन्तःपुरं यावक्षिप्ता दृक्तावदेक्ष्यत । तदालिमाला तादृक्तत्प्रतिकर्मक्रियोन्मुखी ॥ ९७ ॥ अन्वयः-यावत् अंतः अंतःपुरं दृक् क्षिप्ता, तावत् तारक तत् प्रतिकर्म क्रिया उन्मुखी तत् आलिमाला पेक्ष्यत. ॥ ९७ ॥ अर्थः-(पछी) जेवामा में अंतेउर तरफ नजर करी, तेवामा तेवी तेज राणीनी आसनावासनानी क्रिया करती एवी तेणीनी सखीओनी श्रेणि मारा जोवामां आवी. ॥९७ ।। इत्यद्भुतधुतवान्ते मयि कान्तेन तेजसा । अर्क कर्करयन्कश्चिदाविरासीत्पुरः सुरः ॥१८॥ ___ अन्वयः--इति अद्भुत धुत स्वांते मयि, कांतेन तेजसा अर्क कर्करयन् कश्चित् सुरः पुरः आविरासीत्. ॥ ९८ ॥ अर्थः-एवी रीतना आश्चर्यमा मारु हृदय व्याकुल यता, मनोहर तेजवी सूर्यने पण कांकरासरखो करतो कोइक देव मारी आगळ प्रगट थयो. ॥ ९८॥ तद्विलोकादहं जातजातिस्मृतिरचिन्तयम् । प्राग्जातो धनधन्याख्यौ सुहृदावहमेष च ॥ ९९ ॥ अन्वयः-तद्विलोकात् जात जाति स्मृतिः अहं अचर्तियं, पाग जातो अहं च एपः धन धन्याख्यो सुहदी. ।। ५९ ॥ अर्थ:-तेने जोवाथी थयेल छे जातिस्मरण शान जेने, एवो हुं विचारवा लाग्यो के, पूर्वभवमा हुं अने आ देव धन अने धन्यनामना मिलो हता. ॥ ९९ ॥ 545-545454 For Private And Personal Use Only
SR No.020143
Book TitleChandrayash Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1928
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy