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Achar
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सुरत बंदर रही चोमासुं, स्तवन रच्युं एवारी ॥ सतरसे बासठ वरसें, संघ सकल हित कारीरे ॥ ॥ भविका० ॥ २२ ॥ सिद्धचक्रनो महिमा सुणतां, होवे सुख विस्तार ॥ श्री विजयसेनसूरिश्वर विनवे, दान विजय जय कारीरे ॥ नविका०॥ २३ ॥
॥ श्री अष्टापदजीतुं स्तवन । ___॥ नींदरडी वेरण हुई रहो ॥ ए देशी ॥
श्री अष्टापद उपरे, जाणी अवसर हो आव्या आदिनाथके ।। भावे चोसठ इंद्रशें, सप्तवतरण हो मल्या भोटा साथके ! श्री० ॥ १॥ विनीतापुरथी आवियो, बहु साथे हो वली, भरत भूपाल के ।। वांदी हीयडा हेजसुं, तात सुरतीहो निके नयणे निहालके ॥ श्री.॥२॥ लई लाखीगा भामणी, कहे वयणा हो मोरा नयणा धन्नके ॥ विण सांकल विण दोरडे, बांधी लीधुं हो वाहाला लें मन्नके ॥ श्री० ॥ ॥३॥ लघु भाईए लाडका, ते तो तातजी हो राख्या हीयडा हजुरके ॥ देशना सुणी वांदी वदे, धन्य जीवडाहो जे तर्या भवपुरके ॥ श्री० ॥ ४॥ पूछे प्रेमे
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