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निसुव्रत स्वामी, तणो अभिधान, लहे नय मांन आनंद घणो ॥ २० ॥ अरीहंत सरूप अनुपम रूपके, सेवक दुःखने दुर करे ॥ निज वाणी सुधारस मेघ जले, भवीमानस मान भूरी भरे ॥ नमी नाथको दर्शन सार लही कुण, विष्णु महेश धरे जो परे ॥ अब मानव मुढ लहि कुंण सकर, छोडके कंकर हाथ धरे ॥ २१ ॥ जादववंश विभूषण साहिब, नेमि जिणंद महानंदकारी॥ समुविजय नरिंद तणो सुत, उज्वल शंख सुलक्षण धारी॥ राजुल नार मुकी निरधार, गये गिरनार कलेस निवारी ॥ कन्झल काय शिवा देवी माय, नमे नय पाय महा व्रतधारी ॥ २२ ॥ पार्श्वनाथ अनाथको नाथ, सनाथ भयो, प्रभु देखत थे। सविरोग विजोग, कुजोग महा दुःख दुर गए प्रभु, ध्यावतथे ॥अश्वसेन नरेश, सुपुत विराजित, धनाघन वान समान तनु । नय सेवक वंछीत, पूरण साहिब, अभिनव कामं करि रमनु ॥ २३ ॥ कमठ कुलंठ उलंठ हठी हठ, भंजन जास प्रताप विराजे । चंदन वाणी सुवामानंदन, पुरुसादाणी बिरुद जस छाजे ॥ जस नामके ध्यान थको
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