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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ भव भीम महार्णव, पूर अगाह, अथाग उपाधि, सुनीर घणो । बहु जन्म जरा, मरणादि विभाव, निमिस घणादि कलेस घणो ॥ अवतारकतार, क्रिपा कर साहिब, सेवक जाणी अछे अपणो ॥ १७ ॥ अरदेव सुदेव, करे नर सेव, सवे दुख दोहग, दुर करे ॥ उपदेश घनाघन, नीर भरे भवि, मानसमान, भूरीतरे ॥ सुदर्शन नाम, नरेसर अंगज, भव्य मने प्रभु, जास वसे ॥ तस संकट शोक, वियोग कुयोग, दरिद्र कुसंगति, न आवत पासे ॥ १८ ॥ नील कीर, पंखी नील. नागवलि पत्र नील, तरुवर राजि नील, नील नील द्राख हे || काचको सुगोल नील, इंद्र नील रत्ननील पत्रनील चास हे ॥ जमुना प्रवाह नील, भंगराज पंखी नील, जेहवो अशोक वृक्ष, नील नील रंग हे । कहे नय तेम नील, रागथे आतम नील, मल्लीनाथ देव नील, जाको अंग नील हे ॥ १९ ॥ सुमित्र नरींद, तणो वरनंद, सुचंद्र वदन, सोहावत है । मंदर धीर, सेवे नरहीर सुशाम शरीर बिराजित हे ॥ कज्झल - बांन, सुकछपयान, करे गुणगान, नरिंद घणो ॥ मु For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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