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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar हार, रूपको आगार हे । छोडि सवि चित्तखार, मान मोहको विकार, काम क्रोधको संचार, सर्व वैरी वार हे ॥ आदर्यो संजमभार, पंच महाव्रत धार, उतारे संसारपार, ज्ञानको भंडार है । इग्यारमो जिणंद सार खडगी जिव चिन्हधार, कहे नय वारोबार, मोक्षको दातार हे ॥ ११॥ लाल केसु फुल लाल, रति अर्घ रंग लाल, उगतो दिणंद लाल, लालचोल रंग हे। केसरीकी जीह लाल, केसरको घोल लाल, चूनडीको रंग लाल, लाल पान रंग है ॥ लाल कीर चंचू लाल, हींगलो प्रवाल लाल, कोकिलाकी दृष्टि लाल, लाल धर्म रंग है। कहे नय तेम लाल, बारमो जिणंद लाल, जयादेवी मात लाल, लाल जाको अंग हे ॥ १२॥ कृतवर्म नरिंद, तणो एह नंद, नमत सुरेंद्र, प्रमोद धरी । गमे दुख दंद, दीये सुखबंद, जाको पद सोहतः चित्त धरी ॥ विमल जिनंद, प्रसन्न वदन, जाके शुभ मन्न, सुगंग परि ॥ नमे एक मन्न, कहे, नय धन्य, नमो जिनराज, जिणंद सुप्रीत धरी ॥ १३ ॥ अनंत जिणंद For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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