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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ ॥१॥ खत्री कुंडे नरपति, सिद्धारथ राय ॥ राणी त्रिसलातणी कुंखे, कंचन सम काय ॥ २ ॥ पुष्पोतर विमानथी चवीए, उपना पुन्य पवित्र ॥ चतुरा चौद सुपन लहे, उपजे विनय विनित ॥ ॥३॥ ( चोथु) सुपनविध कहे सूत होस्, त्रिभूवन सिणगार ॥ ते दिनथी रिधे वध्या, धन अखुट भंडार ॥२॥ साढासात दिवस अधिक, जनम्या नवमासे॥ सुरपति करे मेरु सिखरे, उच्छव उल्लासे ॥२॥ कुंकुम हाथा दीजीये ए. तोरण झाकझमाल ॥ हरखे वीर हुलरावीये, वांणी वनित रसाल ॥३॥ (पांचमुं) जिननी बहेन सुदर्सना, भाइ नंदिवर्द्धन ॥ परणी यसोदा पदमनी, वीर सकोमल रत्न ॥१॥ दे दान संवत्सरी, लेइ दिक्षा स्वामी ॥ कर्म खपावी थया केवली, पंचमी गति पांमी ॥२॥ दीवाली दीवस थकीए, संघ सकल सुभरीत ॥ अठम करी तैलाधरे, सुणज्यो एकहि चित ॥ ३ ॥ (छ) पास जिणेसर नेमनाथ, समुद्रथी वैष्णुव सूणीये ॥ आदिसरना च. रित्र, जिननां अंतर सुणीये ॥१॥ गौतमादीक For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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