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तमथी जोडिये, निक्षेपा चार ॥ तो प्रभु रुप समान भाव, पामे निरधार ॥२॥ पावन आतमने करे ए. जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रभु पूजा ध्यानथी, राम कहे सुखपूर ॥३॥ इति ॥
॥ श्री पर्युषणपर्वतुं मोटु चैत्यवंदन ।। ॥श्री शेजो सिणगारहार, श्री आदि जिणंद ॥ नाभिराया कुल चंद्रमा, मरुदेवी माय ॥१॥ काश्यप गोत्र इखाग वंश, विनितानो राय ॥ धनुष पांचसे देहमान, सोवन सम काय ॥ २ ॥ वृषभ लंछन धूर वंदियेए, संघ सकल सुभरीत ॥ अठाइधर आराधीए, आगम वांणी वनीत ॥ ३॥ (बोजु) प्र वाधिदेव, जिनवर महावीर ॥ सुरनर सेव्यो सांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥१॥ परव पजुसण पुण्ययी, पामी भवी प्राणी ॥ जैन धरम आराधिये, समकित हित जांणी ॥२॥ श्री जिनप्रतिमा पुजीयेए, कीजे जनम पवित्र ।। जीव जतन करी सांभलो, प्रवचन वाणी वनित ॥ त्रीजुं) कल्पतरु वर कल्पसुत्र, पुरे मनवंछित ॥ कल्पधर धुरथी सुणो, श्री वीर चरित्र
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