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૪૮૮ ॥ बीजो थोय जोडो॥
॥ सुविधि सेवा ॥ ए देशी॥ ॥ पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरमें फली ॥ सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मली। जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये ॥ नेमी राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रतलीये ॥१॥ वीर एकाकी चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति ॥ पासने महि त्रयशत साथे, बीजा सहसे व्रती ॥ षट शत साथे संयम धरता,वासुपूज्य जग धणीअनुपम लीला ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी ॥२॥जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु वेलडी ॥ द्राख विहासे गई वनवासे, पीले रस सेलडी ॥ साकर सेंती तरणा लेती, मुखे पशु चावती ॥ अमृत मीटुं स्वर्गे दी, सुरवधू गावती ॥३॥ गजमुख दक्षौ वामन यक्षौ, मस्तके फणावली ॥ चार ते बांही कच्छप वाही, काया जस शामली ॥ चउकर प्रौढा नागारूढा, देवी पद्मावती ॥ सोवन कांति प्रभु गुण गाती, वीर घरे आवती॥ ॥४॥ इति ॥
१ त्रणशे. २ काचवाना वाहन वाळा.
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