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ते देश नगर पुरी, जिहां विचरे जिनराज ॥ भवि जीवने प्रतिबोधता, सारे आतम काज ॥ अनुभव रसमयि देशना; स्यादवाद समुदाय ॥ सत्ता धर्म प्रकासता, दुरगति दुःख पलाय ॥९॥ जिम उत्तम पद रूपनी ए, निस दीन करो सेवा ॥ अमीकुमर एणीपरे भणे, मोक्ष तणां सुख लेवा ॥ १० ॥ इति ॥
॥ अथ गौतमस्वामीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ बीरुद धरी सर्वज्ञमुं, जिन पासें आवे ॥ मधुरे वयण शुं वीरजी, गौतम बोलावे ॥१॥ पंचभूत मांही थकी ए उपजें, वीणसें ॥ वेद अरथ विपरीतथी, कहो किम भव तरसे ॥ २॥ दान दया दम त्रिनु पदे ए; जाणे तेहज जीव ॥ ज्ञानविमल घन आतमा, सुख चेतना सदैव ॥३॥ इति ॥
॥अथ रोहिणी तपनु चैत्यवंदन ।। * ॥ रोहणी तप आराधीए; श्री श्री वासुपूज्य ।। दुःख दोहग दूरे टले, पूजक होये पूज्य ॥ १ ॥ पहेला कीजे वास खेप, प्रह उठीने प्रेम ॥ मध्याने करी धोतीयां, मन वचन काय खेम ॥२॥ अष्ट प्रकारनी
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