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Achar
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मुनिसुव्रतनमि च्यवनुं तिहां ॥ सकल निर्मलचंद्र तणी विभा, विशदपक्ष तणो शिर पूर्णीमा ॥१॥धमनाथ जिन केवल पामीश्रा, पद्मप्रन जिन नाण सधामिया, ॥ इम कल्याणक संप्रति जिन तणा, थया पुनिम दिवसे सोहामणा ॥ २ ॥ पन्नर योग तणे विरहे लह्या, पन्नर भेदे सिद्ध जिहां कह्या ।। पन्नर बंधन प्रमुख विचारणा, जिनवर आगम ते सुणी ए जना ॥ ३ ॥ सकल सिद्धि समिहित दायका, सुरवर जिन शासन नायका ॥ वधुकरो हल कीर्तिकला घणी, ज्ञान विमल जिननाम, तणो गुणी॥ ४ ॥ इति पुनमनी स्तुति. ॥
॥ अथ अमावास्यानी स्तुति ॥
॥ चोपाईनी ॥ ए देशी ॥ ॥ अमावास्यां तो थर उजली, वीरतणे निर्वाणे मिली ॥ दिवाली दिन तीहांथी होत, राय अढार करे उद्योत ॥ १ ॥ श्रीश्रेयांस नेमिलहे ज्ञान, वासुपूज्य ग्रहे संयम ध्यान ॥ संप्रति जिननां थयां कल्याण, अमावास्या दिवसे गुणखाण ॥२॥ काल
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