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४४६ गया, जस लंछन रुपे महीष थया ॥ ते अजर अमर निकलंक भया, तस पाय नमी कृत्य कृत्य थया ॥१॥ श्रीशीतल संभव शांति वासुपूज्यजिना, अभिनंदन कुंथु अनंत जिना ॥ संजम लीए शुभ भावना, केइ पंचम नाण लहे धना ॥ कल्याणक आठ सोहामणा, नित नित तस लीजे भामणा ॥ सविगुण मणि रयणा रोहिणी, पुरवी सवि मननी कामना ।।२॥ तिहां चउ. दस भेद जीव तणा, जगभेद कह्या छे अति घणा ॥ गुणठाणां चउद तीहां भण्या, चउदस पूर्वनी वर्णना ॥ नवि कीजे शंका दषणा, अतिचार तणी तिहां धारणा ॥ प्रवचन रस कीजे वारणा, एह छे भवजल तारणा ॥ ३ ॥ शासन देवी समकित चंडा, दिए दु. गति दुर्जनने दंमा ॥ अकलंक कला धरी सम तुंडा, जस जिह्वा अमृतरस कुंमा । जसकर जपमाला कोहंडा, सुरनाम कुमार लेनदंडा ॥ जिम आगले अवर छे एरंडा ॥ ज्ञानविमल सदा सुख अखंडा ॥४॥
॥ अथ पुनमनी स्तुति ॥ ॥श्री जिनपति संभव ल्ये संजम तिहां, श्री
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