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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ४२८ सुर थया, ओगणत्रिसरे पाटनते सिवमागया ॥२६॥ त्रुटक ॥ गया सिवमा एम मांडो, ओगणत्रिस उरध अधे ॥ अंक नेलो पूर्वनि परे, देव सिव मारग सधे ॥ २७ ॥ इम जाणोरे अंक अंत आवे हवे, तेह डंडि. कारे आगलमा आदिग्वे ॥पेहले अंकेरे पेहलि दंडिका सिध करो, बीजी दंडिकारे प्रथम अंक सरमा धेरा ॥२८॥ त्रुटक ॥ धरो सुरमा एह अनुक्रमे, धारो गुरु पासे रहि ॥ अजीत स्वामितातजावत, उपजे तिहां लगे कहि ॥ २९॥ असंख्यातिरे कोडि लाख इंम दंडिका, सिधने वलिरे सर्वारथ अखमिका॥इंम प्रकरणरे सिध दंडिकामा कां, नंदिसत्र निरे वृत्ति माहे पण इम लघु ॥ ३०॥ त्रुटक० ॥ इंम लघुवृत्ति गुरु पासे, पामि अर्थ में भाखीओ. स्वपरने परकास हेते, स्तवन करी चित राखीओ ॥३१॥ सास्वता सुखरे ज्ञान दर्शन माहि रहे, फरि भवमारे सिध थया ते नवि भमे ॥ जेहनु सुखरे मुखथी कहिए केटलु, उपमा विणरे सुं कहि दार्खा केटलं ॥३२॥ एटलु अजर अमर निर्मम, जास ज्योति प्रगट थ६॥ सिद्ध परम समृद्धि For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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