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४२६ सिव एकेका, असंख्याता थाय॥ पछे चौद लाख सुर, सर्वे सीवमां जाय ॥ ११ ॥ इम बे बे करतां, थया असंख्याता जेह ॥ इत्यादिक जावत, होय पंचास सिव तेह ॥ १२ ॥ इंम पंचास पंचास, थाए असंख्याति रासि ॥ लोका लोक भाषक, केवलज्ञान विलास ॥ ॥ १३ ॥ हवे पाट लाख दोय, मोक्ष तथा सुर थाय ।। इंम त्रण चार लाख, उभये सरिखा थाय ॥ १४ ॥ इंम लाख असंख्याता, सुर निर्वाण असंख्याता ॥ सुर शब्दे जाणो, अनुत्तर में भाख्या ॥१५॥
॥ ढाल ॥ त्रीजी ॥ भरत नृप भावसुं ॥ ए देशो ॥
॥ एक सिवे दोय देवता ए, त्रण सिव च्यार सिव थाय ॥ उत्तम वंस एहनो ए, पण शिव सुर खट जाय ॥ १६॥ नमो सिद्ध भावसुं ए ॥ एक वद्यते इंम किजीएए, मोक्ष सर्वारथ देव ।। थाए वे असंख्याता ए, जीहां लगे करो नित मेव ॥न०॥११॥ हवे एक सिव त्रण देवता ए, पण सिव सग सुर तामाकरो बे बे पाधता ए, जाव असंख्य दोय ठाम ॥न०॥१८॥ पछे एक सिव च्यार देवता ए, सात
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