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॥ ६ ॥ उवाइ उपांगने रायपसेणी, जीवाभिगम मन आंणो ॥ पन्नवणांने जंबु पन्नति, चंदपन्नति एम जांणो ॥ भवि ॥ ७॥ सूर्यपन्नती निरयावलि तिम, कप्पिया कप्प वृत्तिक ॥ बार उपांग एणीपरें बोल्या, पुफिया पुष्फतिक भवि० ॥ ७ ॥ चउसरण पयन्नो पहेलो, आउर पञ्चख्खाण ते बीजो ॥ महापञ्चख्खाणने भत्तपरिज्ञा, तंफूलं वियालि मन रीझो ॥नवि०॥ ॥९॥ चंदा विजयने गणि विज्झातिम,मरण समाधि वखाणो ॥ संथारा पयन्नो नवमो, गहाचार दस जांणो ॥ भवि०॥ १० ॥ दश वैकालिक मुल सूत्र ए, यावश्यक ओध नियुक्ति ॥ उत्तराध्ययने ते चोथो जांणो, श्री वीर प्रभुनी ओक्ति ॥ भवि० ॥ ११॥ निशिथ छेद ते पेहलो जांणो, बृहत कल्प विवहार ॥ पंच कल्पनें जितकल्प तिम, महानिशिथ मनोहार भवि० ॥ १२ ॥ नंदी अनुयोग आगम पिस्तालीस, संप्रती काले जाणो ॥ जिन उत्तम पदरुप निहाली, शिवलदमी घरआणो ॥ भवि तुमे वंदोरे बागम सुखकारी ॥ १३ ॥ इति ॥
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