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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ४१४ आज ॥ पूर्व मुनिसुं विरोध्योरे, ते किणे नवि प्रतिवोध्यो ॥४॥ ते मुनि सुं कहे बंडोरे, मुज धरति सवि छंडो । विनवित्रो मुनि मोटो रे,नवि माने कर्मि खोटो ॥५॥ साठसयां वर्ष तप तपिओरे, जे जिन किरीयानो खपीओ ॥ नामे विष्णु कुमाररे, सयल लब्धिनो भंडार ॥६॥ उठ क्रम भुमि लेवारे, जोवा भाइनी सेवा ॥ ल्यूं त्रिपदि भूमि दानरे, नले जले आव्या भगवान ॥७॥ इणे वयणे धडहडीओरे, ते मुनि बहु कोपे चढिओ ॥ किधो अदभूत रुपरे, जोयण लाख सरुप ॥८॥ प्रथम चरण पूर्वे दीधोरे, बिजो पश्चिमे किधो ॥ त्रिजो तस पुंठे थाप्योरे, नमुंचि पाताले चांप्यो॥ ॥९॥थरहरीओ त्रिभूवनरे, सलभलिओ सवि जन ॥ सलसलिओ सुर दिन्नरे, पडयो नवि सांभलिए कन्न ॥ १०॥ ए उत्पात अत्यंतरे, दूरि करो भगवंत ॥ है है श्यु हवे थाशे रे, बोले बहु एक सासे ॥११॥ करणे किन्नर देवा रे, कडुया क्रोध समेवा ॥ मधुर मधुर गाएं गीतरे, बे कर जोडी विनीत ॥१२॥ विनय थकी वेगे वलिओ रे, ए जिन शासन बलिओ ॥ दानव For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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