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॥ १२ ॥ पुण्य कथा हवे कुण केलवशे, कुंण वाल्हा मेलवशे ॥ मुज मनडो हवे कुंग खेलवशे, कुमति जिम तिम लवशेरे॥ जी०॥ १३॥ कुण पुढ्यानो उत्तर देशे, कुण संदेह भांजशे ॥ संघ कमळ वन किम विकससे, दुं छद्मस्था वेसेरे ॥ जी० ॥ १४ ॥ हुं परापुर वसुं अजाण, में जिन वात न जाणि ॥ मोह करे सवि जग अनाणी, एहवी जीनजीनी वाणीरे ॥जी० ॥१५॥ एहवे जिन वयणे मन वाप्यो, मोह सबल बल काप्यो ॥ इण भावे केवल सुख आप्यो, इंद्रे जिनपद थाप्योरे । जी० ॥१६॥ इंद्रे जुहारया भट्टारक, जुहार जट्टारक तेणे ॥ पर्व पन्होतुं जगमां वाप्यु, ते किजे सवि केणरे ॥ जी० ॥१७॥ राजा नंदिवर्द्धन नुतरीयो, नाइ बहिनर बीजे ॥ ते भावड बीज हुइ जग सघले, बेहेन बहपरे किजेरे ॥ जी०॥ १० ॥
॥ ढाल ९ मी ॥ विवाहलानी ॥ परिहरीए नवरंग फालडीए, मांडि भृगमद केसर भालडीए ॥ झव झबके श्रवणे झालडीए, करी कंठे मुगताफल मालडीए ॥१॥ घर घर मंगल माल
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