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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ ॥ श्री जिन चैत्यवंदन ॥ ॥अद्याभवत सफलता नयन द्वयस्य देव त्वदीय चरणांबुज वीक्षणेन।अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासतेमे, संसार वारि धिरयं चक्षुक प्रमाणः॥१॥ कलेवं चंद्रस्य कलंक मुक्ता, मुक्तावली चारु गुण प्रसन्ना ॥ जगत्रया स्याभिमंत ददाना, जैनेश्वरी कल्प लतेव मूर्ति ॥ धन्योहं कृत पुण्योहं, निस्तीर्णोहं भवार्ण वात ॥ अनादि भव कांतारे, दृष्टोयेन श्रुतो मया ॥ ॥ ३ ॥ अद्य प्रक्षालितं गात्रं, नेत्रेच विमलिकृत ॥ मुक्तोहं सर्व पापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात् ॥ ४ ॥ दर्शनात दुरित ध्वंसी, वंदनात् वंछित प्रदः ॥ पूजनात् पुरुरकः श्रीणां, जिनःसाक्षात् सुरद्रुमः ॥ ५ ॥ ॥अथ श्रीसिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ।। ॥ श्री आदिनाथ जगन्नाथ, विमलाचल मंडन ॥ जयनाभि कुलाकाश, प्रकाशन दिवाकर ॥१॥ तवदेव पदांभोज, सेवापि दुर्झना भवेत् ॥ पुण्य संभार हीनानां ॥ कल्पवल्बी व देहिनाम् ॥ २॥ ते धन्या मानवा देवा, योगमन्तब शासनं ॥ वंदनीया विभा For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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