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|| श्री पार्श्वनाथजीतुं चैत्यवदन ॥ ॥ प्रणमामि सदा प्रभु पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुख घनं ॥ घनचारु महोत्तम देहधरं, धरणी पति नित्य सुसेवकरं ॥ १ ॥ करुणा रस रचित भव्य फणी, फणि सप्त सुशोभित मौलिमणि ॥ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतटं ॥ २ ॥ तटिनीपति घोष गंभीर स्वरं स्वरनाकर अश्व सुसेन नरं ॥ नरनारी नमस्कृत नित्यमुदा, पद्मावती गावीत गीत सदा ॥ ३ ॥ सहनेंद्रिय गोप यथा कमठं, कमठासुर वारण मुक्तहठं ॥ हठ हेलित कर्म कृतांतबलं, बलधाम धुरंधर पंकजलं ॥ ४ ॥ जलजध्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेश मनं ॥ मन मन्मथ
महीरुह वन्हिसमं, समतामय रत्नकरं परमं ॥ ५ ॥ परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरुमे जिननाथ अलं || अलिनी नलिनी नलिनील तनुं, तनुताप्रभु पार्श्वजिनं सुधनं ॥ ६ ॥ धन धान्यकरं करुणा परमं परमामृत सिद्धि महासुखदं ॥ सुखदायक नायक संतभवं, भवभूत प्रभु पार्श्वजिनं शिवदं ॥ ७ ॥ इति ॥
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