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॥ कहे जीन वीरजी ॥ १ ॥ मुज निर्वाण समय थकीरे, त्रिह वरसे नव मास || माठेरो तिहा बेसश्येरे, पंचम काल निरासोरे ॥ कहे० ॥२॥बारे बरसे मुऊ थकिरे, गौतम तुज निरवाण ॥ सोहम वीशे पामशेरे, वरसे अखय सुख ठांणोरे ॥ कहे ० || ३ || चउसठ वरसे मुज थकीरे, जंबूने निरवाण || आथमसे आदित्य थकिरे, अधिकं केवलनांणो रे ॥ कहे० ॥ ४ ॥ मन पज्जव परमावधिरे, क्षपकोपशम मन आंण ॥ संयम त्रिण जिन कल्पनीरे, पुलागाहारग हांणरे || कहे० ॥ ५ ॥ सिजंभव अठाणवेरे, करस्ये दस वैआलिय || चउद पूर्वि भद्र बाहूथीरे, थास्ये सयल विलिओ रे || कहे० ||६|| दोयशत पन्नरे मुज थकिरे, प्रथम संघयण संठाण ॥ पूर्वणुं उगते नवि हूस्येरे, महाप्राण नवि जांगोरे || कहे ? ||७|| चउत्रयपने मुज थकिरे, होस्ये कालिक सूर ॥ करस्ये चउथी पजुसणेरे, वरगुण रयणनो पूरोरे ॥ कहे ० ||८|| मुजथी पण चोराशियेरे, होस्ये वयर कुंमार || दस पूर्वि अधिकालिओरे, रहस्ये तिहां निरधारोरे ॥ कहे ० ॥ ९ ॥ मुज निर्वाण थकि
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