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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ णोत्तरे, रहि डभोई चोमास ए ॥ सुदि मास मृगसिर, तिथि इग्यारश, रच्या गुण सुविलास ए ॥२॥ थय थुइ मंगल, कोडी भवना, पापरज दूरे हरे ॥ जयवाद आपे, कीर्ति थापे, सुजस दिसो दिसी विस्तरे ॥३॥ तपगछ नायक, विजय प्रभ गुरु, शिष्य प्रेमविजय तणो ॥ कहे कांति सुणतां, भविक भणतां, लह्यो मंगल अति घणो (पामीये मंगल अति घणों) ॥ ४ ॥ इति मौन एकादशी स्तवन संपूर्ण ॥ श्रीमहावीर स्वामिनापंचकल्याणकनुं बार ढाल-स्तवन ॥ ढाल पेहेली ।। प्रभु चित धरीने अवधारो मुज वात ।। ए देशी॥ ॥सरसती भगवती दीउ मति चंगी, सरस सुरंगी वाण॥तुज पसाय माय चित्त धरीने, जिनगुणरयणनी खाण ॥१॥ गिरुवा गुण वीरजी, गायशुं त्रिभुवनराय ॥ जसनामे घर मंगल माला, तस घर बहु सुख थाय गि॥२॥ जंबुद्वीप भरत क्षेत्रमाहे, नयर माहणकुंड ग्राम ॥ ऋषनदत्त वरप्रिय बसे तिहां, देवानंदा तस प्रियानाम गि०॥३॥ सुरविमान वर पुप्फो. त्तरथी, चवि प्रभु लीये अवतार ॥ तव ते माहणी For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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