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३.२ दना कीधी जिहां ॥१२॥ समता धररे, निश्चल मेरु परें रह्यो । सुर परिसहरे, निश्चल थइने सांसह्यो । नवी लोपेरे, मान सुव्रत मुनिराजियो ॥ औषध पण रे, सुरें दाखव्यो पण नवि कियो ॥१३॥ त्रु०॥ नवि कियो औषध रोग हेते, असुर अति कोपें चढयो । पाटु प्रहारें हणे त्यारे, मिथ्या मति पापें मढयो । ऋषी क्षपक श्रेणी चढिय केवल, नाण लही मुगति गयो ॥ एम ढाल बीजी कांति भणतां, सकल सुख मंगल थयो ॥ १४ ॥ ॥ ढाल बीजो ॥ सोता हो प्रीधा सीतारा परभात ॥ देशी ॥
॥ भाखी हो जिन भाखी नेमि जिणंद,एणीपरे हो जिन एणीपरे सुव्रतनी कथाजी ॥ सदहे हो जिन सदहे कृष्ण नरिंद, छेदन हो जिन छेदन भव भयनी व्यथाजी ॥१॥ पर्खदा हो जिन पर्खदा. लोक तिवार, भावें हो तिहां भावें अगीयारस उच्चरेजी ॥ एहथी हो एम एहथी नविक अपार, सहेजे भव हो भव सहेजें सायर तरयाजी ॥२॥ तारक हो जिन तारक भवथी तार, मुजने हो प्रभु मुज निर्गुणने हित करी जी ॥
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