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३७७ णक दश खेत्रनां ली। अतित अनागतने वर्तमान, सर्व मली दोढसय तस नाम ॥ जो जिण॥२॥ कल्पवृक्ष तरुमां वडोरे, देव मांहे अरिहंताचक्रवर्ति नृपमां वडोरे, तिथिमा तिम ए इंत॥त्रु॥तिथिमा तम एहुंत वडोरे, भेद कर्म शुभटनो घेरो ॥ मौन आराध्यु शिवपद आपे, संकट वेल तणां मूल कापे ॥ जी० ॥३॥ अहोरत्तो पोसह करी रे, मौन तप उपवास ॥ अगीयार वर्ष आराधियेरे, वली अग्यारह मास ॥ त्रु० ॥ बली अगीयारह मास जे साधे, मनवच कायानी शुद्धे आराधे ॥ मव भवे ते नर सुखीया थाशे, सुव्रत शेठ परें गवरासे ॥ जी० ॥ ४॥ कृष्ण कहे सुव्रत किश्योरे, केम पाम्यो सुखशात ॥ नेम कहे केशव सुणोरे, सुत्रतना अवदात ॥ त्रु० ॥ सुव्रतना अवदात वखाणं, धातकी खंडे विजय पुर जाणुं ॥ पुहविपाल तिहा राज विराजे, चंद्रावती राणी तस छाजे ॥ जी०॥५॥ वास वसे व्यवहारीओ रे, सुर नाम तिहां एक ॥ सदगुरु मुखें एक दिन ग्रहे रे, अगीआरसि सुविवेक ॥ ॥ ७० ॥ अगीआरसी सुविवेके लीधी, रुडी उजमणा
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