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३६२ वीशमो तीर्थकर जितपरिमाण ॥ केशी स्वामी मुखथी एवी वाणी सांभली, साची साची हुइ ते मारे अमृत वाण ॥ हा० ॥२॥ चौद स्वपनें होवे चक्री के जिनराज, वीता बारे चक्री नहिं हवे चक्री राज, जि. नजी पास प्रभुना श्री केशी गण धार, तेहेने वचनें जाण्या चोवीशमा जिन राज, मारी कूखें आव्या ता रण तरण झहाज, मारी कूखें आव्या त्रण्य भुवन शिरताज, मारी कूखें आव्या संघ तीरथनी लाज, हुँतो पुण्य पनोति इंद्राणी थइ आज ॥ हा ॥ ॥३॥ मुझने दोहोलो उपन्यो जे बेसुं गज अंबा डीयें, सिंहासनपर बेसं चामर छत्र धराय ॥ सह लक्षण मुझने नंदन ताहरा तेजनां, ते दिन संभारं ने आनंद अंग न माय ॥ हो० ॥४॥ करतल पगतल लक्षण एक हजारने आठ छे, तेहथी निश्चय जाण्या जिनवर श्री जगदीश ॥ नंदन जमणी जंघे लंछन सिंह बिराजतो, में पहेले सुपनें दीहो विशवा वीश ॥ ॥ हा०॥ ५॥ नंदन नवला बंधव नंदीवर्द्धनना तमें, नंदन भोजाइयोना देयर छो सुकुमाल ॥ हसशे भो
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