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३२२ म्यो पण हारी गयो, जेम रत्ने उडाड्यो काग ॥ एकवार० ॥ ४ ॥ साहेब षडरस भोजन बहु को, साहेब तृप्ति न पाम्यो लगार ॥ साहेब हुरे अनादि भूलमां, साहेब रझळ्यो घणो संसार ॥ एकवार ॥ ॥ ५॥ साहेब सजन कुटुंब मेळा घणां, साहेब तेहने दुःखे दुःखी थाय ॥ साहेब जीव एकने कर्म जुजुआं, साहेब तेहथी दुर्गति जाय ॥ एकवार० ॥ ॥६॥ साहेब धन मेळववा हुं धसमस्यो, साहिब तृष्णानो नाव्यो पार ॥ साहेब लोभे लटपट बह करी, न जोयो पुण्य ने पाप व्यापार ॥ एकवार० ॥ ॥ ७ ॥ साहेब जेम शुद्धाशुद्ध वस्तु छे, साहेब रवि करे तेह प्रकाश ॥ साहेब तेमरे ज्ञानी मळे थके, ते तो आपे समकित वास ॥ एकबार० ॥ ८॥ साहेब मेघ वरसे के वाटमा, साहेब वरसे छे गामो गाम ॥ साहिब ठाम कुठाम जुए नहीं, साहिब एहवा महोटानां काम ॥ एकवार० ॥ ९॥ साहिब हुं वश्यो भरतने छेडले, साहिब तुमे वस्या महाविदेह मोझार ॥ साहेब दूर रही करुं वंदना, साहिब भवसमुद्र
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