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३०६ कुंकुम तिलक कियोए, श्रीफल हाथे दीयोए ॥२४॥ जाइश हुं परभात, साथ करी गुजरात ॥शकुन भला सहीए, तो चालुं वहीए ॥ २५ ॥ लेई उंट कंतार, आव्यो चउटा मझार॥ कन्या सन्मुख मलीए, करती रंग रलीए ॥ २६ ॥ मालण आवी ताम, बाब भरि छे दाम ॥ वधावे शेठ भणीए, आशीस दे घणीए ॥२७॥ मयुगल मल्या खास, वेद बोलतो व्यास ॥ पतरी भरी जोगणी, वृषभ हाथे घणीए ॥ २८ ॥ डाबो बोले सांढ, दधिनो भरियो माट ॥ खरडावो खरो ए, सहु कोइए धरोए ।।२९॥ आगल आव्या जाम, सारंग त्रूठा ताम ॥ नेरव जमणीभलिए, देव डाबि चलिए। ॥ ३० ॥ जमणी रुपारेल, ठारबांधी तिण वेल ॥ ॥ नीलकंठ तोरण कियो ए, उलस्यो अति हयोए ॥ ॥३१॥ हनुमन दीधी हांक, मधुरां बोले काक ॥ लोक हसे सहुए, काम होशे बहुए ॥३२॥ अनुक्रमे चाल्या जाय, आव्या पाटणमांहि ॥ उतारा किया ए, शेठजी आवीयाए ॥३३॥ निशीभर सुता ज्यांहिं, जक्ष आवीने त्यांहि ॥ सुहणे एम कहेए, ते सघलो सद्दहेए ॥३४॥
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