________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०३
पाटणमांहि ॥ भक्ति करे जे भविजन, कुण ते वली कहेवाय ॥४॥ उत्पत्ति तेहनी उचलं, शास्त्रतणी करी शाख ॥ मोटा गुण मोटा तणा, भाखे कविजन भांख ॥ ५॥
॥ ढाल ॥ १॥ नदी जमुनाके ॥ ए देशी ॥ काशी देश मझारके नयरी घणारसी ॥ एसमो अवर न कोय जाणे लंकाजिसी ॥ राज करे तिहां राजके अश्वसेन नरपति ॥ राणी वामा मातके तेहनी दीपती॥ ॥६॥ जन्म्या पास कुमारके तेहनी राणीयें, उछव कीधो देवके इंद्र इंद्राणीयें ॥ जोबन परण्या प्रेम कन्या परभावति, नीत नीत नवला वेश करि देखावति ॥७॥ दीक्षा लेइ वनवास रह्या काउसग्ग जिहां। उपसर्ग करवा मेघमाली आव्यो तिहां ॥ कष्ट देइने तेह गयो जे देवता ॥ चोसठ इंद्र तेहने नित नित सेवता॥ ८॥ वरस ते सोनो आवखो भोगवी उपनां, जोतमाहि वली ज्योत तिहां केइ रुपनां ॥ पाटणमाहे मुरत त्रणे पासनी, मेली भोयरांमांहि राखे केइ शासनी ॥ ९॥ एक दिन प्रतिमा तेह गोडीनी लेश
For Private And Personal Use Only