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सुरमणि घरे देखे रे ॥ जयो० ॥ ४ ॥ अगम अगोचर नय कथा, पार कुणे नवि लहीए रे ॥ तिणे तुज शासन इम कयुं, बहुश्रुत वयणमे रहीए रे ॥ जय० ॥ ५॥ तुं मुज एक हृदय वस्यो, तुंहीज पर उपगारी रे ॥ जरत भविक हित अवसरे, सुज मत मेलो विसारी रे ॥ जय० ॥ ६ ॥
॥ कलश ॥ इम विमल केवल ज्ञान दिनकर, सकल गुण रयणायरो || अकलंक अकल निरीह निर्मम, विनव्यो सीमंधरो || श्री विजयप्रभ सूरिराज राजे, विकट संकट भय हरो || श्री नयविजय बुध शिष्य वाचक, जसविजय विजय करो ॥ १ ॥ ३ ॥ ॥ अथ श्री गोडी पार्श्वनाथ अधिकारे मेघाशानुं स्तवन प्रारंभः ॥
|| दुह| || प्रमुं नित परमेसरी, आपो अविचल मात ॥ लघुताथी गिरुता करे, तुं शारद सरसत ॥१॥ मुझ उपरमया करी, देजे दोलत दान ॥ गुण गाउं गिरुआ तणा, महीयल वाधे वान ॥ २ ॥ धवलधिंग गोडी धणी, सहुको आवे संघ || महिमावादी मोटको, नारंगने नवरंग ॥ ३ ॥ प्रतिमा त्रणे पासनी, प्रगटी
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