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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ लहे, करे ते करमनो अंत ॥ १५॥ स०॥ सुत्र अरथ पहेलो बीजे कह्यो, निजुत्तीए रे मीस ॥ निरविशेष त्रीजो ते अंग पांचमे, एम कहे तुं जगदीस ॥ १६ ॥ ॥स० ॥ सुत्र निजुत्ती रे बिहुं भेद कह्यो, त्रीजो अनु. योगद्वार ॥ कुमा कपटी रे जे माने नही, तेहनो कवण आधार ॥१७॥ स०॥ बद्ध ते सूत्रे रे अर्थ निकाचिया, निजुत्तीए अपार ॥ उपधि मान गुणणादिक किहां लहे, ते विण मार्ग विचार ॥ १८ ॥ स० ॥ जो निजुत्ती रे गइकुमती कहे, सुत्र गयां नहीं केम ॥ जेह वांचतां रे आव्यु ते सवे, माने तो होय खेम ॥ ॥ १९ ॥ स० ॥ आंधा आगे रे दर्पण दाखवो, बहेरा आगे रे गीत ॥ मूरख आगे रे कहे, युक्तिनुं, ए सवि एकज रीत ॥ २० ॥ स०॥ मारग अरथी रे पण जे लोक छे, भद्रक अतीहि विनीत ॥ तेहने ए हित सीख सोहामणी, वली जे सुनय अधीत ॥ २१ ॥स०॥ प्रवचन साखेरे एम में भांखीयां, विगते अरथ विचार ॥ तुझ आगम नीरे ग्रही परंपरा, लहीए जग जयकार ॥ २२ ॥ स० ॥ गुण तुझ सघला रे प्रमु कुण गाण For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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