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नमतां दुःखनो अंत ॥११॥ पुरुरवास अवबोध विकमेंद्र, सुशांति हरदेव नंदिकेश | महामृगेंद्र अशोचित धर्मेंद्र, संभारो नाम निवेश ||१२|| अश्ववृंद कुटलिक वर्द्धमान नंदिकेश धर्मचंद्र विवेक || कलापक विसोम अरनाथ, समय गुण अनेक ॥१३॥ त्रण पदे पदे कोढ जाण ॥ चोथा पदमां भावना, आराधो गुण खाण ||१४|| दोढसो कल्याणक तणो, गुणणो एमनोहार ॥ चित्त आणीने आदरो, जिम पामो भवपार ॥ १५ ॥ जिनवर गुणमाला, पुन्यनी ए प्रनाला ॥ जे शिव सुख रसाला, पामीये सुविशाला ॥ जिम उत्तम थुणीजे, पाद तेहना नमीजे || जिनरुप समजे शिव लक्ष्मी वजे ॥ १६॥ इति दोढसो कल्याएकनुं चैत्यवंदन संपुर्ण ॥
|| नेमनाथनुं चैत्यवंदन ॥
नेमी जिनेसर गुण नीलो, ब्रह्मचारी सिरदार ॥ सहष पुरुषशुं आदरी, दीक्षा जिनवर सार ॥ १ ॥ पंचावनमें दिन लह्या, निरुपम केवलनाण || भविक जीव पडिबोधवा, विचरे महियल जाण ॥ २ ॥ विहार
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