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॥ हम० ॥ ४ ॥ श्री तपगच्छनो नायक सुंदर, श्री विजय देव पटोधारि॥ किर्ति जेहनी जगमाहे झाझी, बोले नरने नारीरे ॥ हम० ॥५॥ श्रीगुरु वयण सुणी बुद्धी सारु, श्री मंधरजिन गायो ॥ संतोषि कहे देवगुरु धर्म, पुरव पुन्ये पायोरे ॥ हमचडी ॥ ६ ॥ इति श्री मंधर स्वामीनो स्तवन संपुर्ण ॥
॥ अथ श्री वीर स्तुतिरुप हंडिनुं स्तवन ।। ढाल १ ली. (ए छिंडी किहां राखी. ए देशी)
॥प्रणमी श्री गुरुना पयपंकज, थुणस्युं वीर जिणंद ॥ ठवण निक्षेप प्रमाण पंचांगी, परखी लहं आणंद रे ॥१॥ जिनजी ॥तुज आणा शिर वहीए॥ तुज शासन नय शुद्ध प्ररुपण, गुणी शिवसुख लहीए रे॥ जिनजी ॥ तु०॥ ए आंकणी॥श्री अनुयोगदुवारे भांख्या, च्यार निक्षेपा सार ॥ च्यार सत्य दश सत्या भाख्या, ठाणांगें निरधार रे ॥२॥ जि० ॥ जास ध्यान कीरिया मांहि आवे, तेह सत्य करी जाणुं ॥ श्री आवश्यक सूत्र प्रमाणे, विगते तेह वखाणुंरे ॥३॥जि०॥ चऊविसथ्थय मांहि निक्षेपा, नाम द्रव्य दोय भाई ॥
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