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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ रीखो जिनजी साहिबोरे, हूंतो गलीनो रंग ॥ कटका काच तणो मुल मुझमां नहीरे, प्रभुतो नगिनो नंग ॥ जि. ॥३॥ भमर सरीखो भोगी श्री भगवंतजीरे, हूंतो माखी तोल ॥ सरीखा सरीखे विण किम बाझे गोठडीरे, हृदय विचारी बोल ॥ जिन० ॥ ४ ॥ कर्म सरीखो लपटाणो तुहि जिहां लगेरे, तिहां लगे तुझने कास ॥ समतानो गुण ज्यारे तुझमां आवसे रे, त्यारे तुं जाईस प्रभुजीने पास ॥ जिन० ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥ ७ ॥ हभचडीनी देशी ॥ ॥ मंधर स्वामी तणी गुणमाला, जे नर भावे भणसे ॥ तस शिर वयरी कोइ न व्यापे, कर्म शत्रुने हणसेरे ॥ हमचमी ॥ १॥ हमचडी मारी हेलरे, श्री मंधर मोहन वेल ॥ सत्यकी राणीनो नंदन निरखी, सुख संपतीनी गेलरे ॥ हम० ॥२॥ मंधरस्वामी तणी गुणमाला, जे नारि नित गणसे ॥ सति सोहागण पिहर पसरी, पुत्र सुलक्षणा जणसेरे । हम० ॥३॥ मंधर स्वामी शिवपूर गामी, कविता कहे शिरनामी ॥ वंदना माहरी हृदयमा धारी, धर्मलाभ · यो स्वामीरे For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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