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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ ॥ ढोल पहेली ॥ कपूर होये अति उजलोरे ॥ ए देशी ॥ । भरत क्षेत्रना मानवीरे, ज्ञानि विण मुंझाय॥ तिण कारण तुमने सहरे, प्रभुजी मनमां चाहे रे ॥ स्वामी आवो आणे क्षेत्र ॥ जो तुम दरीसण देखीयेरे, तो निर्मल कीजे नेत्र रे ॥ स्वामी आवो आणे क्षेत्र ॥१॥ए आंकणी ॥ गाडरीयो परीवार मिल्यो रे, घणा करे ते खास ॥ परिक्षावंत थोडा हुआरे, श्रद्धानो विसवासरे ॥ स्वामी० ॥ २ ॥ धरमीनी हांसी करे रे, पद विहूणो सिदाय ॥ लोभ घणो जगे व्यापीयोरे। तेणे साचो नवि थाय रे ॥ स्वामी० ॥३॥ सामाचारी जुजुई रे, सहू कहे माहरो धर्म ॥ खोटो खरो केम जाणीये रे, ते कुण भांजे भरमरे ॥ स्वामी ॥४॥ ॥ ढाल बीजी ॥ राग रामगीरी ॥ क्रीडा करी घरे आवीयो ॥ ॥ ए देशी ॥ ॥ वीरजी ज्यारे विचरंता. ताहरे वरतती शांति रे॥ जे जन आवीने पलता, तस मन भांजती भ्रांतीरे ॥ १॥ है है ज्ञानीनो विरहो पड्यो ॥ ते तो दहे मुझ दुःखरे ॥ स्वामी सीमंधर तुज विना, ते तो For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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