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समर्यो मनमां नवकारतो || नदी जल फाटी हुइरे
द्वार तो ॥ ० ॥ ० ॥ ९ ॥ एहना मांहे सुरतरु रंगे तो, रंग फाटे फीटे नहीं || गायंता ततक्षण सहु परि० वार तो ॥ अवरमा कोइ सांसो नहीं ॥ कोहे वणारसी कुने पसाय तो || ते० ॥ रा० ॥ १० ॥ रत्न जडित गले पेहेरीयो हार तो, तप तणी मुद्रिका जलइले || खेमा तो खटकण राखीयो हार तो, पंचमी गतिनो एह दातार तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ११ ॥ रत्नमूलानो हाथ परिमाण तो, शियळ अनोपभ जगमां जाएं तो ॥ जे नरनारी नीर वह्यां, अनुभव सुरतरु जय जयकार तो || ते० ॥ परभव पामशे मोक्ष द्वार तो || रा० ॥ १२ ॥ कन्या घुघर तणी सांभलो वात तो, कुडी न पुरशो कोइ तणी साख्य तो ॥ थापण मोसो मत करो, गंधरपनी परे उपनो रोग तो || दुष्कृतनी परे जाणीए ॥ जीभ सडेने पडेरे वियोग तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ १३ ॥ चंपापुरी नगरीतणी सांभलो वात तो, सतीने कलंक आव्या अपरीघ तो ॥ नाम सुभद्रा जाणजो, कुडुं न भाख्यं रतिय लगार तो || ते० रा० ॥ १४ ॥ जितशत्रु
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