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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० ॥ रा० ॥ ३ ॥ मंत्र मांहि कीधो वर्डोरे नवकार तो, गुणतां आणंदजी लागे पाय तो ।। ए रत्नरुप ए निरमां, कर्म रहित थया मोक्ष द्वार तो ||०||रा०॥४॥ सुरनर नारी तुम सांभळो वात तो, गाता पुरशे मन तणी आश तो ॥ ध्यायतां सर्व संकट टळी जाय तो ॥ वैरी विरोध दुर टळे, सुगुणीनो पिता मुक्तिनो साथ तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ५ ॥ एहनो एक अक्षर संभारे तो, पाप खपावे सागर सात तो ॥ पुरे पद आगल कहुं दुरित हरे, सागर पचास तो ॥ पांचसे पूर्णता लहु, वही उपघान भणे नवकार तो ॥ ते० ॥ रा० ॥ ॥ ६ ॥ सूत्र सिद्धांत तोहि एणे प्रकाश तो, तोहि पण एणे समो कोइ नहीं, जिनवर भाखीओ ए लेला तो ॥ साधु श्रावक एम जपिया || मोक्षनुं कारण लहुं भव पार तो ॥०॥०॥७॥ शाश्वता पद ए जगमां जाणतो, तोही पण एणे समें कोइ नहीं ॥ एक शियल बीजो नवकार तो || ते० ॥ रा० ॥ ८ ॥ केरमा चारतो. बोले वेसतो, नदी जल उलट आविया शेठ तो ॥ बालक साथे चलावियो नावतो, तेणे For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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