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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ अढार ॥ श्रुत पर्याय समासमे, अंश असंख्य विचार ॥श्रीश्रुत० ॥१॥ बत्रीस वर्ण समायछे, एक श्लोक मझार । तेमांहे एक अक्षर आहे, ते अक्षर श्रुतसार ॥ ॥श्रीश्रुत० ॥२॥ क्षयोपशम भावे करी, बहु अक्षरनो जेह ॥ जाणग ठाणांग आगले, ते श्रुतनिधि गुणगेह ॥ ॥श्रीश्रुत०॥३॥ कोडि एकावन अडलखा, अगसय अठ्यासी हजार ॥ चालीस अक्षर पद तणा, कहे अनुयोगद्वार ॥श्रीश्रुत०॥४॥ अर्थाते इहां पद कयुं, जिहां अधिकार ठराय ॥ ते पद श्रुतने प्रणमता, ज्ञानावणीय हठाय । श्रीश्रुत० ॥ ५॥ अढार हजार पदेकरी, अंग प्रथम सुविलास ॥ दुगुणा श्रुत बहु पद ग्रहे, ते पद श्रुत समास ॥श्रीश्रुत०॥६॥ पिंडप्रकृतिमां एके पदे, जाणे वह अवदात ॥क्षयोपशमनी विचित्रता, तेहज श्रुत संघात ॥ श्रीश्रुत०॥७॥ पंचोतेर भेदे करी, स्थिति बंधादि विलास ॥ कम्मपथडी पयडी ग्रहे, श्रुत संघात समास ॥श्रीश्रुत० ॥णा गत्यादिक जे मार्गणा, जाणे तेहमा एक ॥ वहेंचण गुणठाणादिके, तस प्रतिपत्ति विवेक ॥ श्रीश्रुतः ॥ ९ ॥ जे बासहि For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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