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अबोधता जायरे ॥ श्री वीर जिणेसर उपदिशे ॥
V
ॐ ही परमात्मने नमः ज्ञानपदेभ्यः कलशं यजामहे स्वाहाः ॥ ए ढाल थई रहे एटले ज्ञान पूजे वासपूजा करे द्रव्यपूजा करे सोना मोहोर तथा रुपा मोहोरथी ज्ञान पुजे तेमां यथा शक्ति जाणवु.
॥ दुहा ॥ सुखकर शंखेश्वर नमी, श्रुणशुं श्री श्रुतनाण || चउमुगा श्रुत एक छे, स्वपर प्रकाशक भाण ॥ १ ॥ अभिलाप्य अनंतमे, भागे रचियो जेह ॥ गणधर देवे प्रणमीयो, आगम रयण अछेह ॥ २ ॥ इम बहुली वक्तव्यता, छठाण वडीया भाव ॥ क्षमा श्रमणभाष्ये कथं, गोपय सर्पि जमाव || ३ || लेश थकी श्रुत वरण, भेद भला तस वीस ॥ अक्षयनिधि तपने दिने, क्षमाश्रमण तेवीस ||४|| सूत्र अनंत अर्थ मयी, अक्षय अंश लहाय ॥ श्रुतकेवली केवलीपरे, भाखे श्रुत पर्याय ॥ ५ ॥ श्रीश्रुतज्ञानने नित नमो, भाव मंगलने काज ॥ पूजन अर्चन द्रव्यथी, पामो अविचल राज || ६ || आ छेला दुहा खमासमण दीठ कहवा || इगस्य अमवीस स्वरतणा, तिहां आकार
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