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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० अबोधता जायरे ॥ श्री वीर जिणेसर उपदिशे ॥ V ॐ ही परमात्मने नमः ज्ञानपदेभ्यः कलशं यजामहे स्वाहाः ॥ ए ढाल थई रहे एटले ज्ञान पूजे वासपूजा करे द्रव्यपूजा करे सोना मोहोर तथा रुपा मोहोरथी ज्ञान पुजे तेमां यथा शक्ति जाणवु. ॥ दुहा ॥ सुखकर शंखेश्वर नमी, श्रुणशुं श्री श्रुतनाण || चउमुगा श्रुत एक छे, स्वपर प्रकाशक भाण ॥ १ ॥ अभिलाप्य अनंतमे, भागे रचियो जेह ॥ गणधर देवे प्रणमीयो, आगम रयण अछेह ॥ २ ॥ इम बहुली वक्तव्यता, छठाण वडीया भाव ॥ क्षमा श्रमणभाष्ये कथं, गोपय सर्पि जमाव || ३ || लेश थकी श्रुत वरण, भेद भला तस वीस ॥ अक्षयनिधि तपने दिने, क्षमाश्रमण तेवीस ||४|| सूत्र अनंत अर्थ मयी, अक्षय अंश लहाय ॥ श्रुतकेवली केवलीपरे, भाखे श्रुत पर्याय ॥ ५ ॥ श्रीश्रुतज्ञानने नित नमो, भाव मंगलने काज ॥ पूजन अर्चन द्रव्यथी, पामो अविचल राज || ६ || आ छेला दुहा खमासमण दीठ कहवा || इगस्य अमवीस स्वरतणा, तिहां आकार For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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