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२३८ अवतार ॥ अहो० ॥ ८॥ एक आंबिले तुटशे ॥राज॥ एक हजार दस क्रोम ॥अहो०॥ दस हजार क्रोड वरसनुं ॥ ॥ राजग | उपवासे नरक आयुष ॥ ॥ अहो राज०॥ ए ॥ तपसु दशन चक्रथी॥राज०॥ करो कर्मनो नाश ॥ अहो० ॥ धर्म रत्न पद पामवा ॥राज. आदरो तप अन्यास ॥ १०॥
॥ कलश ॥ तप आराधन धर्मसाधन, वर्द्धमान तप परगडो ॥ मनकामना सहुं पूरवामां, सर्वथा ए सुरघडो ॥ अन्नदानथी शुभध्यानथी, सुभवि जीव ए तपस्या करो ॥ श्री विजयधर्म सूरशि सेवक, रत्नविजय कहे शीव वरो ॥ १ ॥ इति वर्षमान तप स्तवन सम्पूर्ण ॥
॥ अथ श्री वर्द्धमान तपनी थोयो. ॥ ॥ वर्द्धमान ओली करो, भव भव पातिक त्यारे हरो ॥ वर्द्धमान जिन पामीने, दूर करो सहं खामीने ॥ १॥ वर्द्धमानादिक जिन तर्या, पूर्व भवे जे तप कर्या ॥ ते तप मुजने फल आपो, आहारादिक संज्ञा कापो ॥ २ ॥ अंतगड आचार दिन, श्री चंद्र चरित्र
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