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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ भाखे मुख तिहां, वाघ सिंह बोले वन माहे ॥ हीयडे चिंते राजुल नारी, कीशां क्रम कधिां कीरतार ॥३॥ के में जलमां नांख्या जाल, के में माय विछोह्यां वाल ॥के में सती ने चडाव्यां आल, के में भाखी विरुइ गाल ॥ ४ ॥ के में वन दावानल दीया, के में परधन वंची लीया ॥ केमें शील खंडना करी, तो मुजने नेमे परिहरि ॥ ५॥ इस्यां वचन भांखे सुंदरी, नेम तणे पासे संचरी ॥ स्वामी वचन सण्यां जब सार. मनथी चिंते अथीर संसार ॥६॥राजेमती वैरागीणी थई, हारदोर तिहां छोडे सही ॥ कंकण चुडी अलगी ठवी, लई संयमने हुई साधवी ॥ ७ ॥ सुणी वाख्यान वळी एक मने, त्रुटयो मेघ चमकी दामिनी ॥ वस्त्रे लाग्युं काचुं नीर, भीनुं राजुल तणुं शरीर ।। ॥८॥ रेहेनेम उभा छे जिहां, राजुल वस्त्र सुकवती तिहां ॥ रेहेनेमी दीठा संदरी, परवश पुतां तव इंदरी ॥ ९ ॥ प्रगट थई नर बोल्यो यति, भाभी दुःख म धरस्यो रति ॥ नेम गयो तो मुजने वरो, काम भोग मुज साथे करो ॥ १० ॥ अंग विभूषण सवि आदरो, For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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