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२१३ मुठी लोच कीध ॥ चार सहस वड राजवीरे, साथे चारित्र लीधरे ॥ ऋ० ॥२॥ त्यांथी विचर्या जिनपतिरे, साधुतणे परिवार ॥ घरघर फरतां गौचरीरे, महीअल करे विहाररे ॥ ऋ० ॥ ३॥ फरतां तप करतां थकां रे, वरस दिवस हुआ जाम ॥ गजपुर नयर पधारीयारे, दीपा श्रेयांस तामरे ॥ ऋषभ० ॥४॥ वरसी पार' जिन जईरे, शेलडी रल तिहां कीध ॥ श्रेयांसे दान देईनेरे, परभव संबल लीधरे । ऋ० ॥५॥ सहस वरस लगे तप तपीरे, कर्म कर्या चकचूररे ॥ पुरिमतालपुर आ आवीनेरे, वीचरंता बहु गुण पुर्यारे ॥ऋ०॥६॥
॥ ढाल ॥ ५ ॥ कपूर होवे अति उजलोरे ॥ ए देशी ॥ ___ समवसरण देवे मलीरे, रचियुं अतिहि उदार॥ सिंहासन बेसी करीरे, दीए देशना जिन सार ॥ चतु. रनर० ॥१॥ कीजे धर्म सदाइ, जिम तुम शिवसुख थाय ॥ चतुरनर ॥ कीजे० ॥ बारे परखदा आगलेरे, कहे धर्म च्यारे प्रकार ॥ अमृत सम देशना सुणीरे, प्रति वोध्या नरनार ॥ चतुरनर० ॥२॥ नरत तणा
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