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सुपन अर्थ विचार || लाल० कुलदीपक त्रिभुवन पति
॥ मन० ॥ पुत्र होशे सुखकार || लाल० ॥ ७ ॥ सुपन अर्थ पीउंथी सुणी ॥ मन० || मन हरख्यां मरुदेव || || लाल० ॥ सुखे करी प्रतिपालना || मन०॥ गर्ज तणी नित मैव ॥ लाल० ||८|| नव मसवाडा उपरे ॥ मन० || दिन हुवा साठासात ॥ लाल० ॥ चैत्रवद् आठम दीने || मन० ॥ उत्तराषाढा विख्यात || लाल० ॥९॥ मझीम रयणीने समे ॥ मन० ॥ जन्म्यो पुत्र रतन ॥ || लाल० || जन्म महोच्छव तबकरे ॥ मन० ॥ दिशी कुमरी छप्पन्न || लाल ॥ १० ॥
॥ ढाल || ३ || देशी हभचडीर्नी ॥
आसन कंप्यं इंद्रतणुरे, अवधिज्ञाने जाणि ॥ जिननो जन्म महोच्छव तब करवा, आवे इंद्र इंद्राणी रे ॥ हमचडी ॥ १ ॥ सुर परिवारे परवर्या रे, मेरु शिखर लई जाय || प्रभुने नमण करीने पूजी, प्रणमी बहु गुणगारे || हमचडी ||२|| आणी माता पासे मेहेली, सुर लोके पहुंता ॥ दीन दीन वाधे चंद्र तणी परे, देखी हरखे मातारे ॥ हमचडी० ॥ ३ ॥ वृषभ तशुं
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