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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ पासे दीक्षा पालीने, अणसण दीधुं अंतरे ॥ पांचमे भवे बीजे देवलोके, ललितांग सुर दीपंतरे । सेबो०॥ ॥४॥ देवचवी छठे भवे राजा, वज्रजंघ एणे नामेरे। तीहाथी सातमे भवे अवतरीआ, जुगला धर्मशुंठामेरे॥ ॥सेवो० ॥ ५॥ पूर्ण आयु करी आठमे भवे, सुधर्म देवलोक देवरे ॥ देवतणी ऋद्धि बहुली पाम्या, देवतणा वळी जोगरे ॥ सेवो० ॥६॥ मुनिभव जिवानंद नवमे भवे. वैद चवी थयो देवरे॥ साधुनी वैयावच्च करी, दिक्षा लई पाळे स्वयमेवरे ॥ सेवो० ॥७॥ वैद जीव दसमे भवे स्वर्गे, बारमें सुरह होयरे ॥ तिहां कणे आयु भोगवी पुरुं, बावीस सागर जोयरे ।सेवो. ॥८॥ अगीयारमें भवे देव चवीने, चक्रीहओ वज्रनाभ रे ॥ दीक्षा लई वीस स्थानक साधी, लीधो जिनपद लाभरे ॥ सेवो० ॥ ९॥ चौद लाख पूर्वनी दीक्षा, पाली निर्मल भावेरे ॥ सर्वार्थ सिद्ध अवतरीया, बारमें भवे आयरे ॥ सेवो० ॥१०॥ तेत्रीस सागर आयु प्रमाणे, सुख भोगवे तिहां देवरे ॥ तेरसमा भव केरो हवेहूं, चरित्र कहुं संखेवरे ।। सेवो० ॥११॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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