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पूर्ण फल लीधुंजी ॥ सु० ॥ पंचमीये पारणं की धुंजी ॥ सु० ॥ ज्ञान जक्ति महोच्छव देखीजी ॥ सु० ॥ देवी देव हुआ अनिमेषीजी || सु० ॥ ५ ॥ सुख विलसंता संसारजी ॥ सु० ॥ हुआ सुत चउ पुत्री चारजी ॥ सु०॥ लियो अंते संयम भारजी ॥ सु० ॥ घनघाति खपाव्यां चारजी ॥ सुणो० ॥ ६ ॥ लहि केवल शिवपुर जावेजी ॥ सु० ॥ गुण अगुरुलघु निपजावेजी || सु ॥ अवगाहन लक्षण संताजी ॥ सु० ॥ तिहां बीजा सिद्ध अनंताजी ॥ सु० ॥ ७ ॥ तस फरसित देश प्रदेशेजी ॥ सु० ॥ असंख्य गुणा सुविशेषेजी ॥ सु० ॥ जुओ प्रथम उपांगे ठामजी ॥ सु० ॥ शुभवीर कहे प्रणामजी ॥८॥ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ कोईलो पर्वत धुंधलोरे लोल ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर जिणेसर गुण नीलोरे लोल, ए भाख्यो अधिकार || सुगुणनर || वरते शासन जेहनुंरे लोल, एकवीस वरस हजाररे ॥ सुगुणनर ॥ वीर जीणेसर गुणनीलोरे ॥ १ ॥ जिहां सफल जिन गुण सुणीरे लोल, दिहा सफल प्रभु ध्यानरे ॥ सु० ॥ जन्म सफल प्रभु दरिसोरे लोल | वाणीये सफल कानरे ॥ सु० ॥
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