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१७१ घणो, धर्म कीहां जगदीश ॥भ०॥५॥ याग करे होमे तिहां, घोडा नरने रे छाग ॥ होमे जलचर मीडका, धर्म कीहां वीतराग ॥ भ० ॥६॥ करे सदाये रे नोरता, जीव तणां आरंभ ॥ हणे महिषने बोकडा, जेहथी नरक सुलंभ ॥ भ०॥७॥ सारे सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वजनां रे श्राद्ध ॥ तेडी पोखेरे कागडा, देखो एह उपाधि ॥भ०॥ ८॥ तीर्थ जाय गोदावरी, गंगा गया प्रयाग ॥ न्हावे अणगल नीरमां, धर्म तणो नहीं लाग ॥ भ० ॥ ९॥ इत्यादिक करणी करे, परभव सुखनेरे काज ॥ कहे जिन हर्ष मले नहीं, एहथी शिवपुर राज ॥भ०॥१०॥ ॥ ढाल ॥६॥ जाया तुज विण घडीरे छमास ॥ देशी ॥
॥धर्म खरो जिनवर तणोजी, शिव सुखनो दातार ॥ श्री जिनराजे प्रकाशीयोजी, जेहना चार प्रकार ॥ भाविक जन ज्ञान विचारीरे जोय ॥ दुर्गति पडता जीवने जी, धारे ते घर्म होय ॥ भविकजन० ॥१॥ ए आंकणी ॥ पंच महावत साधुनां जी, दशविध धर्म विचार ॥ हित करीने जिनवर कह्योजी,
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