________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५९ यौवने काला केश रे ॥ वृद्ध पण वली पली वपु अति दुर्बल, शक्ति नहि लव लेशरे ॥श्री०॥७॥
ढाल ॥ २ ॥ गिरुआ गुण वीरजी ॥ ए देशी ॥'
॥ तव स्वभाववादी वदेजी, काल किस्युं करे रंक ॥ वस्तु स्वभावे नीपजे जी, विणसे तिमज निशंक॥ सुविवेक विचारो, जुओ जुओ वस्तु स्वभाव ॥१॥ ए आंकणी ॥ छते योग जोबनवती जी, वांझणी न जणे बाल ॥मुच्छ नहिं महिला मुखे जी, कर तल उगे न वाल । सु० ॥ २ ॥ विण स्वभाव नवि निपजे जी, केम पदारथ कोई ।। आंब न लागे लींबडे जी, बाग
संते जोय ।। सु०॥३॥ मोर पिच्छ कुण चीतरे जी, कोण करे संध्या रंग॥ अंग विविध सवि जीवनां जी, सुंदर नयन कुरंग ॥सु० ॥४॥ काटा बार बबुलना जी, कोणे अणीयाला कीध ॥ रूप रंग गुण जुजुआ जी, तरु फल फुल प्रसिद्ध ॥ सु०॥५॥विषधर मस्तक नित्य वसे जी, मणि हरे विष ततकाल ॥ पर्वत स्थिर मल वायरोजी, उर्ध्व अग्निनी ज्वाल ॥ सु०॥६॥ मत्स्य तुंब जलमा तजे जी, बूडे काग पहाण ॥ पंखी
For Private And Personal Use Only