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१५६ हो लाल, वेगे होय शिवदेवरे ॥ वा० ॥ ज०॥६॥ दंसण ज्ञानमा मेळवी हो लाल, ज्ञान क्रियाये कही सिकरे वा० ॥ पंगु अंधो नर दो भले हो लाल, मनह मनोरथ कीधोरे ॥ वा० ज० ॥७॥ जेटला वचन विचार छे हो लाल, तेटलां नयना वादरे ॥ वा०॥ सहु अंतर प्रीति करे हो लाल, सुणी वीरना वचन जे स्वादरे ॥ वा० ॥ ज०॥८॥
॥ ढाल ॥ ८ ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥श्रीमहावीरजीनागुण गावो, संशय मनना मीटावोरे, मुक्ताफलनो थाल भरीने, प्रभुजीना ज्ञान वधावोरे ॥ श्री० ॥१॥ आसमये श्रुतज्ञानी मोटा, शुद्ध स्वरूप समजावोरे ॥ ज्ञानीनो जे विनय सेवे, तो अतिचार न थावेरे ॥ श्री० ॥ २ ॥ आवश्यकादिक ग्रंथ अनुसारे, रचना करी मनोहाररे॥ हिनाधिक निजबुद्धि कहेवाय, ते श्रुतधर सुधारीरे, ॥श्री०॥३॥ मुनि कर सिद्धि चंद्रज वरसे, आठम शुदी भले भावेरे ॥त्रणसे त्रीस कल्याणक ए दिन, त्रीस चोवीसीना थावेरे ॥ ॥ श्री० ॥ ४ ॥ पेहेला पांच जीणंद नमि नेमि, सुव्रत
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