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॥ सा० ॥ निर्मल केवल ज्योति तो ॥ ६॥ समकित शुद्ध एहथी होय ॥ सा० ॥ लीजे भवनो पार तो ॥ बीजं आवश्यक इश्युं ॥ सा० ॥ घनवीसथ्थो सार तो ॥७॥
॥ ढाल ॥३॥ गीरिमां गोरो गीरुओए । ए देशी ॥
वे कर जोडी गुरु चरणे देज वांदणारे ॥ आ. वश्यक पचवीश धारोरे धारोरे धारोरे दोष बत्रीश निवारीएरे ॥१॥ चार वार गुरु चरणे, मस्तक नामीएरे ॥ बार करी आवर्त खामोरे खामोरे खामोरे वली तेत्रीस आशातनारे ॥२॥ गीतार्थ गुणी गिरुआ गुरुने वंदतारे, गोत्र क्षय जाय, थायेरे थायेरे उंच गोत्रनी अरजनारे ॥३॥ आण ओलंगे कोई न जगमा तेहनीरे, परभव लहे सौभाग्य, भाग्यरे भाग्यरे दीपे जगमा तेह-रे ॥ ४॥ कृष्णराय मुनिवरने दीधां वांदणारे, क्षायिक समकित सार पाम्यारे पाम्यारे तीर्थकर पद पामशेरे ॥ ५॥ शीतल आचार्य जिम भाणेजने रे द्रव्य वांदणां दीध, भावेरे भावरे देतांवली केवल लथुरे ॥६॥ ए आवश्यक त्रीजुंएणीपेरे जाण
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