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जीहो भामंडल झलकंत ॥ जगत० ॥ २ ॥ जीहो अनंत गुणीहो जीनराजजी, जीहो परउपगारी प्रधान ॥ जीहो करुणा सिंधु मनोहरु, जीहो त्रिलोके जगभाए ॥ ॥ जगत० ॥ ३ ॥ जीहो चोत्रसि अतिशय विराजता, जीहो वाणी गुण पांत्रीस || जीहो बारे परखदा भावशुं, जीहो भगते नमावे शीश ॥ जगत० ॥ ४ ॥ जीहो मधुरी ध्वनी दीये देशना, जीहो जीमरे असाढोरे मेघ ॥ जीहो अष्टमी महिमा वरणवे, जीहो जगत बंधु कहे ते || जगत० ॥ ५ ॥
॥ ढाल ॥ ३ ॥ रुडीने रडियालीरे वाला तारी देशनारे, तेतो जोजन लगे संभळाय ॥ त्रिगडे विराजेरे जिन दीये देशनारे, श्रेणिक वंदे प्रभुना पाय ॥ अष्टमी महिमा कहो कृपा करीरे, पुछे गोयम अणगार ॥ अष्टमी आराधन फल सिधनुंरे ॥ १ ॥ वीर कहे तीथी महिमा एहनोरे, ऋषभनुं जनमकल्याण ॥ ऋषभ चारित्र होय नीरमलुरे, अजितनुं जनम कल्याण || अ० ॥ २ ॥ संभव च्यवन त्रीजा जिनेसरुरे, अभिनंदन निरवाण ॥ सुमति जनम सुपार्श्व
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